गुरुवार, 24 मार्च 2011

शनिवार, 19 मार्च 2011

'मुन्नी बदनाम हुई' और अफीम के खेत




मुन्नी का जादू विदेश में भी सर चढ़कर बोल रहा है। खबर है की सलमान ख़ान अभिनीत 'दबंग' के सुपरहिट गाने 'मुन्नी बदनाम हुई' ज़बरदस्त धूम मचाने के बाद, अब गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल कर लिया गया है हालांकि मुझे क्या मुन्नी को भी पहले कभी लगा नहीं था कि ये गाना गिनीज़ बुक में दर्ज होगा।


दरअसल अभिनेत्री मलाइका अरोरा ख़ान ने ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न शहर में 1,200 लोगों के साथ तीन मिनट तक इस गाने पर डांस किया, जो एक नया विश्व रिकॉर्ड है। इससे पहले सिंगापुर में एक गाने पर 1008 लोगों ने डांस किया था. जो पिछला विश्व रिकॉर्ड था।
मुन्नी की बात से याद आया की मंदसौर जिला भी 'मुन्नी बदनाम हुई' और 'शीला की जवानी' को लेकर खासा उत्साहित है। कारण अजीब जरूर है गरीब बिल्कुल नहीं।


मंदसौर नीमच और रतलाम जिला अफीम की खेती के लिए जाना जाता है,वो ही अफीम जिसे काला सोना भी कहते है । अंग्रेज़ी राज में वर्ष 1920 तक भारत बहुत बड़ी मात्र में अफ़ीम निर्यात करता था वो अफीम ही था जिस के बलबूते पर अंग्रेजो ने भार पर राज किया ।ये महज एक संयोग नहीं है कि अफ़ीम का धंधा बंद होने के 20 साल के भीतर अंग्रेज़ी राज ने अपनी वापसी कि तैयारी कर ली। इसके बाद भारत में रहना लाभकारी नहीं रह गया था।


कुल भारतीय राजस्व में अफ़ीम का हिस्सा सतत रूप से 18-20 फीसदी था। अगर आप इस रूप में देखें कि ये केवल एक उत्पाद था जो कि अर्थव्यवस्था का इतना बड़ा हिस्सा था। ये अविश्वसनीय लगता है... आश्चर्यजनक !
इस आंकड़े में वो मुनाफा शामिल नहीं है,जो अफ़ीम को जहाजों से पहुँचाने में कमाया गया या फिर इससे जुड़े अन्य कई छोटे बड़े सहयोगी धंधों से आया।


आपको नहीं लगता की कालचक्र घूम गया है। आज अफ़गानिस्तान दुनिया का सबसे बड़ा अफ़ीम पैदा करने वाला मुल्क है और धनवान पश्चिम उसका सबसे बड़ा खरीददार है?

मुख्यत: तीन जिलों नीमच, मंदसौर और रतलाम में 13 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में होने वाली अफीम की खेती कड़े शासकीय पहरेदारी मे होती है । इसके लिए वैध तौर पर 34 हजार किसानों को पट्टे दिए गए हैं।और सरकार ने तय किया है की प्रदेश में जल्दी ही सैटेलाइट से अफीम एवं गांजे की अवैध खेती पर नजर रखी जा सकेगी। मतलब ये की अफीम की फसल किसानो के लिए इकलौते पुत्र की तरह हो गयी है।

इन अफीम उत्पादक इलाको मे आज कल दहशत सा माहौल है। किसानो के अफीम के खेतो मे एक घुसपेठिया नजरे गड़ाए हुआ है नीमच,मंदसौर, जावरा क्षेत्र में अफीम की फसल लहलहा रही है। और ग्रामीण परेशान है नीलगायो से..

नीलगायो कि गिनती 15 20 वर्ष पूर्व तक दुर्लभ प्रजाति के पशुओं में हुआ करती थी। नीलगाय एक बड़ा और शक्तिशाली जानवर है। कद में नर नीलगाय घोड़े जितना होता है वह घास भी चरती है और झाड़ियों के पत्ते भी खाती है। मौका मिलने पर वह फसलों पर भी धावा बोलती है। उसे बेर के फल खाना बहुत पसंद है। महुए के फूल भी बड़े चाव से खाए जाते हैं। अधिक ऊंचाई की डालियों तक पहुंचने के लिए वह अपनी पिछली टांगों पर खड़ी हो जाती है। उसकी सूंघने और देखने की शक्ति अच्छी होती है, परंतु सुनने की क्षमता कमजोर होती है। वह खुले और शुष्क प्रदेशों में रहती है जहां कम ऊंचाई की कंटीली झाड़ियां छितरी पड़ी हों। ऐसे प्रदेशों में उसे परभक्षी दूर से ही दिखाई दे जाते हैं और वह तुरंत भाग खड़ी होती है। ऊबड़-खाबड़ जमीन पर भी वह घोड़े की तरह तेजी से और बिना थके काफी दूर भाग सकती है। वह घने जंगलों में भूलकर भी नहीं जाती।

नीलगाय में नर और मादाएं अधिकांश समय अलग झुंडों में विचरते हैं। नर अत्यंत झगड़ालू होते हैं प्रत्येक नर कम-से-कम दो मादाओं पर अधिकार जमाता है।

पहले चिड़ियाघर में पिंजरो में कैद नीलगाय को देख लोग रोमांचित होते थे पर अब वही नीलगाय फसल बर्बाद किये हैं। नीलगायों की धमाचौकड़ी से प्रतिवर्ष लाखों की फसल क्षति का सामना किसानों को करना पड़ रहा है। किसान फसल का अपेक्षित उत्पादन हासिल न कर तबाह होते जा रहे हैं। नीलगाय को चूंकि आम जनमानस में गाय का दूसरा रूप माना जाता है। इसलिए नीलगायों का फसल पर हमला देखकर भी घेराबंदी कर मारने का मन नहीं बना पाते हैं ।

नीलगायों से अफीम बचाने के लिए किसानो ने कई उपाय किए सब बेकार वो तो भला हो मुन्नी और शीला का जिन्होने किसानो को राहत की सांस लेने का मौका दिया है। नील गाय के आक्रमण से बचाव करने के लिए अंचल के किसान गीत संगीत का सहारा ले रहे है । अफीम की खेती ऑक्टोबर से अप्रेल के महिने तक की जाती है और यह नीलगाय के प्रजनन का समय भी होता है,और ऊपर से अफीम खा लेने के बाद नीलगाए खासकर नर काफी आक्रामक हो जाता है,नील गाय को मारना धार्मिक अपराध के साथ वन्य जीव संरक्षण अधिनियम में सजा का प्रावधान होने से मारना संभव नहीं है ।

आज कल हर खेत मे म्यूजिक सिस्टम की मदद से खेतो मे हिन्दी फिल्मों के हिट गाने बज रहे है याने 'मुन्नी बदनाम हुई' अफीम के खेत मे और 'शीला की जवानी' वो भी अफीम के खेत मे...


और हा भिया एक बात और ......

गाज़ीपुर स्थित अफ़ीम की फ़ैक्ट्री 188 वर्ष पुरानी है। दो शताब्दी पुरानी यह फ़ैक्ट्री दुनिया की सबसे बड़ी अफ़ीम की फ़ैक्ट्री है,जिसे क़ानूनी मान्यता है। फ़ैक्ट्री के मालिक माणिक मुखर्जी के अनुसार भारत की अफ़ीम 'शुद्ध' होती है जिसका औषधीय गुण काफ़ी है।

अफ़ीम आज भी अर्थव्यवस्थाओं का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है कम से कम अफगानिस्तान का तो है ही,बर्मा का भी।

"अफ़ीम ही वह उत्पाद था जिससे ब्रिटिश शासन का सूर्य चमकता था"वर्तमान में जापान, फ्रांस और श्रीलंका की दवाई कंपनियों को इस फ़ैक्ट्री से अफ़ीम निर्यात की जा रही है - उपन्यासकार amitaabh घोष ('सी ऑफ़ पॉपीज़')

किसानो की कोशिश है की ......नीमच एफएम रेडियों रिले केन्द्र का विधिवत उद्घाटन हो जाए जिससे यह अभी प्रातः 6 बजे से रात्रि 11 बजे तक चल सके । रात्रि 11 बजे से सुबह 6 बजे तक आकाश वाणी का राष्ट्रीय प्रसारण शार्ट वेव के 31 मीटर बैंड पर भी चालू किया जाए, फूल वक्त इसका प्रसारण लोफिक्वेंसी याने मिडियम बैंड पर हो रहा है जिसकी आवाज नील गाय को डराकर भगाने की क्षमता रखती है । रेडियों ट्रांसीस्टर बिजली के अभाव में भी काम करते है ।

इंटरनेट से प्राप्त जानकारी के अनुसार - नीलगाय के नाम के साथ "गाय" शब्द शायद औरंगजेब ने लगाया जिससे कि इस जानवर का अंधाधुन्ध शिकार न हो ।




Thax -wikipedia

बुधवार, 9 मार्च 2011

मालवी गर्ल

मालवी Girl
लड़की के गाल पर गुलाब मारने पर :

इंग्लिश गर्ल: "डार्लिंग, यू आर सो नॉटी। "
उर्दू: "नही करो जानू"
सिख: "तुसी बड़े रोमांटिक हो"
मालवी: "काई करें टेपा आँख फोडेगो काई|"

सोमवार, 7 मार्च 2011

Padmshree Prahlad Tipaniya (कबीर भजन) Guru gam ka sagar tamne lakh la...

कबीर भजन : पद्मश्री प्रहलादसिंह टिपानिया

कबीर भजन गुरु गम का सागर तं ने लाख लाख वंदन

मालवी बोली और कबीर के दोहे। इन दोनों का मधु मिश्रण पद्मश्री प्रहलादसिंह टिपानिया विगत 25 बरसो से प्रस्तुत कर रहे है। कबीर से कैसे जुड़े इस रहस्य को टिपानियाजी उजागर करते हुए कहते है -" मैं तो विज्ञान का छात्र रहा। कबीर का नाम सुना जरूर था लेकिन पड़ा नहीं था । तम्बूरा सीखने के प्रेम ने मुझे कबीर तक पहुंचाया। आज जो हूँ कबीर की बदौलत हूँ। "
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