गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

"ओ भिया,कुछ समझे कि नी"

रायचंदजी की कथा

कल रायचंदजी मिले,बात बात मे एक कहावत कह गए। हमे दिलचस्प लगी।

जैन साब भाटे मे,
माहेश्वरी आटे मे,
अग्रवाल घाटे मे
और
ठाकुर साब चांटे मे।

हमने कहा -
"रायचंदजी,जरा बात को खोलो,ताकि वो हमारी खोपड़ी मे समा पाये।"

"देखो भिया ऐसा है कि, जो जैन होते है , उनकी धन की गति भाटे मे जाती है। भाटा,याने की फत्थर। अबदेखो,जैन मंदिर मे कित्ता फत्थर होता है।"
उन्होने
बात को भूगर्भीय दृष्टिकोण से समझाई


"माहेश्वरी लोगो को देखो,जीमण मे लगे रहते है। कभी 56 भोग, तो कभी कोई पाल्टी। तो भिया उनका पैसा तो आटे मे,यानि खानेपीने मे गति करता है।"
मैं रायचंदजी के गहरे सामाजिक और आध्यात्मिक ज्ञान से,प्रभावित होने ही जा रहा था कि,उन्होने तीसरा तीर छोड़ा।

"अग्रवाल साब,घाटे मे,याने अग्रवाल साब व्यापार को बिजनेस कि तरह से करते है।"

मेरी व्यापारिक समझ गंभीर बंदर कि तरह है। मै व्यापार और बिजनेस को एक ही समझता था,सो मैंने बचकानी हरकत कि और पूछ लिया -

"रायचंदजी, व्यापार और बिजनेस तो एक ही है न।"

रायचंदजी ने मुझे ऐसे देखा,जैसे कोई शहर का छोरा गाँव मे भैस का दूध निकाल रहा हो। हम समझ गए कि हमसे इन्दिराजी जैसी इमरजैंसी वाली गलती हो गयी है। खुद को संभाल पाते उसके पहले ही रायचंदजी ने बड़प्पन का परिचय देते हुए कहा -

"भिया,व्यापार का मतलब होता है,कमाना और खाना। बिजनेस का मतलब है,खाना और कमाना। अग्रवाल साब अलग अलग धंधा करते है। कभी अच्छा चलता है,तो व्यापार कर लिया नी तो बिजनेस तो कर ही लेंगे।"

मैंने अपनी चुल्लू भर अक्ल को चरने छोड़ दिया, और हाँ मे हाँ मिलाने मे ही भलाई समझी और अपनी सूक्ष्म समझ को रायचंदजी के पावरफुल माइक्रोस्कोप के हवाले कर दी।
"और भिया,ठाकुरजी चाटे मे,इसका मतलब है..."
मेरी अनाड़ी सी दिखने वाली आंखो,मे दार्शनिक अंदाज मे करुणापूर्वक देखते हुए,उन्होने कहा -
"...ठाकुरो का खून गरम होता है,उलझ जाते है जल्दी,बाद मे परेशानी मे आते है। इसीमे इनके धन कि गति होती है,अर्थात धन खर्च होता है।"
इतना कहकर रायचंदजी डनलप पिलो के सहारे किसी कथाकार कि तरह निर्विकार भाव से हमे ऐसे देखने लगे, जैसे पूछ रहे हो --

"ओ भिया,कुछ समझे कि नी"

मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

ज्ञानचंद,मालवी पाठशाला

चोरी की कहानी मालवी की जुबानी

एक दन रात कि बात है साब रोटा खाई न हम साब रोटा खाई न हूँ कमाड के हक्कल लगाई न खाट पे हुय गयो
These things happened in one day and night; after having the food I locked थे door and slept on the cot.

चोर एक दन पहला भी आया था तो उनकी थल नई पडी,फेर दूसरा दन फेर आया
One previous day, thieves came here but their plan did not succeed so they came again on another day.

तो हूँ ओसाराम मे हुतो थो
That time I was sleeping on the veranda.
ने नींद लागी न करीबन बारा डेड बजे कि बात होगा ने चोल्डा घर मे भराण
The time was about 12 or 1.30 – I was sleeping well – at that time thieves
entered in to my house.
ओसाराम मे टाटी भाडीन गर मे वराण !
They removed the sack-wall of the veranda and entered inside।
गाय तीन थीं, दो बासरु था,दो बैल था !
We had three cows, two cattle, and two oxen।
एक गाय के छोड़ी न उण ने बायर लिकालं दी !
They caught one cow and brought it out।
दूसरी कि छोड़ी न लिकालंवा लागि ने हू बाट मे खत पे हुतो थो !
Again they came inside and caught the second cow and tried to go out – at that time I was sleeping on a cot in the way.
तो उकि गाय कि पुंछ कि म्हारा मुणड़ा पे लागी !
While he was crossing the way with the cow, its tail swept on my face.
ने हू चिल्लाणु दौडजो रे चोल्डा भरई गया !
I got up and shouted, “Run! A thief got inside!”
एतरामे एक चोल्डो ने म्हारे लठ कि दी !
At that time one thief beat me with a stick
न हू अलग कूदी न बची गयो
I jumped and escaped.
एतरामे टेगड़ो भोसियों म्हारों भाणेज भी म्हारे घरखा मेरेज रेतो थो !
At that time a dog barked; my son- in- law was also living near my house।
ऊ और गम का चिल्लाण "रे कई हुई गयो रे, चोल्डा भरई गया !"
He and the villagers asked me, “Why did you shout ?” I said, “Thieves came.”
वी भागा तो चोल्डा आया तो गाय छोड़ी न भागी गया !
While they [villagers] came, the thieves left the cow and ran away.
और हम फेर सब रोता वोटा खाय न फिर हम सब सोयी गया !
Then we had food and slept।
सवेरे दूसरा दिन बरसात को टेम थो !
Next day morning there was rain.
हूँ भैस चरवा चरयरियों थो !
I was pasturing the buffalo.
तो खेत का हेड़ा पे उब्बो थो !
I was standing on the boundary of the field।
तो सोयाबीन मे से साप निकलियों !
That time a snake came out of the soya bean field.
तो लिखता खेब ऊ ने म्हारा पग मे काटियों!
The snake bit my leg.
ने हु बेस लई न घरे आयो !
I brought the buffalo back to the house.
तो छोरा छोरि के क्यो के म्हारे पैन बेडी गयो !
My children said that there is a wound in my leg।
एतरा मे वी म्हारा फटफटी पे बेढाडि ने उज्जैन लई गया ! अस्पताल मे भरती कर दियो !
They made me to sit on a motorcycle and took me to Ujjain and admitted me in
hospital.

फिर हू बेहोश हुई गयो !
Then I became unconscious।
म्हारे कमसेकम एक घंडे मे होश आया होगा !
Almost one hour later my consciousness came back.
ने तो भगवान चाहे तो हू फेर व से अच्छी हुई गयो
By the grace of God I became okay.
यह कहानी एक 25 साल के युवक ने बताई जोकि 10 वी तक पढ़ा है! इसकी मातृभाषा मालवी(उज्जयिनी)है।

आइये ,देखे हमें कहानी कितनी समझ आई ....

QUESTION १
Where did he sleep?
On the veranda. (half correct – near the door or outside the door)

QUESTION 2
Who came when he was sleeping?
Thieves।

QUESTION 3
What did they remove from the veranda ?
Sack-wall।

QUESTION 4
When the thief brought out the second cow, what was the storyteller doing ?
Sleeping।

QUESTION 5
What did the thief do to the storyteller?
Beat him।

QUESTION 6
How did the storyteller escape?
Jumped।

QUESTION 7
Who is the relative staying near his home?
Son-in-law।

QUESTION 8
What did he do to the buffalo?
Pasturing।

QUESTION 9
What did come out from the soya bean field?
Snake।

QUESTION 10
Where did the snake bite?
On his leg।

QUESTION 11
What did he bring back to the house?
Buffalo।

QUESTION 12
How many hours later did his consciousness come back to him?
One hour.
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खड़ी बोली को लेकर अकसर लोग ये मानते हे की इसमे sophistication के कमी होती है एक किस्म की अभद्रता है क्यूकी इसमे कभी कभी वे शब्द जो हिन्दी मे सम्मान के लिए प्रयुक्त होते है दिखाई नहीं देते !जैसे "आप" की जगह "तम" !खेर जो भी हो मैंने तो मालवी को सीखने का फैसला किया है और इसमे ज्ञानचंदजी मेरी मदद करेगे उनके अनुसार मालवी के चार प्रकार है उज्जयिनी राजवाडी
उमड़वाडी और सोन्धवाडी !
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(Thanx SiL)

शनिवार, 25 दिसंबर 2010

हिन्दी, मालवी और इंदौरी !!!!!!!!


भिया ये हमारी पेचान है


राजीव नीमा एक ऐसी शख्सियत है जिनसे, मालवी खासकर इंदौरी, अच्छे से परिचित हैं ! इंदौरी और मालवी भाषा का, सूक्षम अवलोकन इनकी प्रस्तुतियों में सा दिखाई देता हैं !

एक इंदौरी दुनिया के किसी भी कोने में हो, "ओ भियो ओ" कहते ही अपना परिचय स्वयं प्रस्तुत कर देता हैं ! इंदौरी भाषा की खास पहचान जो राजीव भाई ने बताई, मजा आ गया , आप भी देख़े ...........

मैं के रिया हूँ
रत्तीभर
चराने की शर्म नी
पालटी (पार्टी )
का जा रिया है
मैं यु पलटा
कां ले चलु
इसकी बारा बजाऊ

अचानक हिंदी फिल्मो के वो हास्य द्रश्य याद आ गये, जिनमे राजस्थानी, बिहारी, गुजराती, बंगाली, पंजाबी, दक्षिणी, बम्बैया भाषा का प्रयोग था ! मन में एक जिज्ञासा जागी क्या कारण है ? हिंदी पर इतने अलग अलग प्रभाव के खोजने के लिए, गूगल महाराज को पकड़ा, धडाधड जानकारी मिली !!!!!

विश्व में बोली जाने वाली, ३००० से भी ज्यादा भाषाओ में, हिन्दी , व्याकरण में परिपूर्ण, शब्दों में समृध, और धव्नियो में स्पष्ट हैं !

पश्चिमी उत्तरप्रदेश में बोली जाने वाली खड़ीबोली, आधुनिक हिंदी का मूल स्त्रोत है ! कबीर और आमिर खुसरो ने , इसका उपयोग किया ! ईस्ट इंडिया कंपनी ने १८ व़ी शताब्दी में खड़ीबोली के कई साहित्यों को लिपिबद्ध किया!

भक्ति साहित्य मे ब्रज से हम परिचित है ! माध्यमिक कक्षा मे पढ़ी "खूब लड़ी मर्दानी वो तो , झाँसी वाली रानी थी" के द्वारा मैंने, बुन्देली भाषा के रस का आनंद लीया । हरियाणवी (जाट) भाषा से परिचय सुरेन्द्र शर्मा जी और जैमिनी जी ने करवाया ! बिहारी भाषा के प्रतिनिधि के रूप में, लालूजी , आम आदमी के बीच, अपनी सुपरिचित अंदाज मे उपस्थित है ! मैथिली (जो उच्च समुदाय की भाषा रही है ), मगधी ,भोजपुरी बिहार की अन्य प्रमुख भाषाये है !
और, मालवी खोजने पर पाया, की मालवी वास्तव मे राजस्थानी (मेवाड़ी ) भाषा का ही परिवर्तित रूप है!

हिन्दी ने सभी को गले लगाया और अपनी गोद मे स्थान दिया है, एक माँ की तरह !! हिन्दी ने अपने आप को रूपांतरित भी आसानी से किया है ! सबसे अच्छा उदाहरण है , कठबोलिया, जो विशेष सामाजिक या व्यावसायिक समूहो मे बोली जाती है, ताकि बाहरी व्यक्ति, उनकी बातचीत न समझ सके ! जैसे की इंदौर के सराफा मे उपयोग आनेवाले ये शब्द–
छोया - रवाना करना / भगाना
पाउ - आसामी/अमुक व्यक्ति
थिगले - लेले /डन कर /ओके
छोयापनति - ज्यादा चतुराई दिखाना


हिन्दी ने विदेशी भाषा को भी प्रभाव खोये बिना आत्मसात किया है -
बांगलादेश , पाकिस्तान ,जर्मनी ,इंग्लैंड , अमेरिका , दक्षिण अफ्रीका आदि देशो मे गये प्रवासियो द्वारा बोली जाने वाली हिन्दी का अलग ही स्वरूप है, फ़िजी मे हिन्दी फिजिबात या फ़िजी हिन्दी कहलाती है! दक्षिण अफरिका मे इसे नाइतालिके रूप मे जानते है!

हिन्दी ने नयी पीढ़ी के अनुसार भी अपने को रूपांतरित किया, और पुरानों को भी सम्मान दिया ! जहाँ पुरानी पीढ़ी क्षेत्रीय विशेषताओ को हिन्दी मे जोड़ते गए ! वही दूसरी और नयी पीढ़ी ने हिन्दी मे नयी भाषा के, नये शब्दो को अपनाया !

पुरानी पीढ़ी
हमारे लिए पनवा (पानी ) भर लाओ
नयी पीढ़ी
अंकल मैं किस टाइम मिलू

मानक भाषा कभी कभी, वास्तविकताओ को स्पष्ट नहीं कर पाती , और वह कठबोली (slang/ argol) काम आती है ! कठबोली हास्यप्रभाव के लिए भी इस्तेमाल होती है ! कठबोली के कुछ उदाहरण

हरामी
साला
ससुरा
मुहंजली
करमजली

कुछ आधुनिक slangs है

वाट लगा दिया (परेशानी मे डालना )
मामू बना दिया ( मूर्ख बनाना )
मस्त (अच्छी /सुंदर )
चाटू (बोर )
छमिया (स्मार्ट गर्ल )
झिंचाट (चमकीला चमकदार)
लाल परी (देशी दारू )
टशन (स्टाइल )

हिन्दी के कई शब्द, आज भी शुद्ध रूप मे प्रचलित है जैसे

मांग, न्यायपालिका, संक्रामक रोग, दीक्षांत समारोह,
वितरक, न्यायाधीश, प्राकृतिक चिकित्सा, छात्रावास,
थोक व्यापार, न्यायालय, व्याकरण, शिक्षा विभाग,
बयाना, मुख्य न्यायमूर्ति, कवि सम्मेलन, परिक्षा,
दलाल, वकिल, खारिज, कर्मचारी, नामांकन,
निलंबन, नियुक्ति, प्रशाश्निक, अनुदान

मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

मालवा: एक परिचय

मालवा: एक परिचय

मालवा की काली माटी की सोंधी सोंधी गन्ध, कांटो की बागड़ से घिरे खेतों में,चने की हरी भरी डालियाँ, मंत्रमुग्ध कर देती है तृप्त कर देती है
मालवा, ज्वालामुखी के उद्गार से बना पश्चिमी भारत का एक अंचल है।यह क्षेत्र आर्यों के समय से ही एक स्वतंत्र राजनीतिक इकाई रहा है। मालवा का अधिकांश भाग चंबल नदी तथा इसकी शाखाओं द्वारा सिंचित है, पश्चिमी भाग माही नदी द्वारा सिंचित है। यद्धपि इसकी राजऩीतिक सीमायें समय समय पर थोड़ी परिवर्तित होती रही तथापि इस क्षेत्र में अपनी विशिष्ट सभ्यता, संस्कॄति एंव भाषा का विकास हुआ है। मालवा के अधिकांश भाग का गठन जिस पठार द्वारा हुआ है उसका नाम भी इसी अंचल के नाम से मालवा का पठार है । इसे प्राचीनकाल में मालवा या मालव के नाम से जाना जाता था, वर्तमान में मध्यप्रदेश! मालवा का उक्त नाम "मालव' नामक जाति के आधार पर पड़ा इस जाति का उल्लेख सर्वप्रथम ई. पू. चौथी सदी में मिलता है, जब इस जाति की सेना ने सिकंदर से युद्ध में पराजित हुई थी। ये मालव प्रारंभ में पंजाब तथा राजपूताना क्षेत्रों के निवासी थी, लेकिन सिकंदर से पराजित होकर वे अवन्ति व उसके आस- पास के क्षेत्रों में बस गये। उन्होंने आकर (दशार्ण) तथा अवन्ति को अपनी राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बनाया। दशार्ण की राजधानी विदिशा थी तथा अवन्ति की राजधानी उज्जयिनी थी। कालांतर में यही दोनों प्रदेश मिलकर मालवा कहलाये। इस प्रकार एक भौगोलिक घटक के रुप में "मालवा' का नाम लगभग प्रथम ईस्वी सदी में मिलता है।

वर्त्तमान में यह लगभग ४७,७६० वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है तथा इसके अंतर्गत धार , झबुआ, रतलाम, देवास, इंदौर, उज्जैन, मंदसौर, सेहौर, शाहपुर, रामसेन, राजगढ़ तथा विदिशा जिले आते हैं।
(via Wikipedia)

जॉनी जॉनी मालवी मे

~~~~~~~जॉनी जॉनी मालवी मे~~~~~~~~~~

Jony Jony
yes Papa
eating sugar
no Papa
telling lies
no Papa
open your mouth
ha ha ha....



धापुडी धापुडी
कई बापू
शक्कर फाकी
नी बापू
झूठ बोले
को नी बापू
बुक्कों फाड़
हा हा हा

कम्प्युटर और गाय का गोबर

कम्प्युटर और गाय का गोबर
एन रघुरामन के आलेख से हिबोवोल नामक कंपनी के बारे मे पता चला, जो लुधियाना मे गाय के गोबर का इस्तेमाल करके बिजली बना रही है कंपनी के पास 150000 गाय है!
एक डाटा सेंटर को चलाने मे 10000 गाय की जरूरत है! डाटा कंपनीया, ढेरसारी सूचनाओ को एकत्रित करती है, और ज्यादा बड़े डाटा सेंटर के मांग हमेशा बनी रहती है, और इनमे बिजली की काफी खपत भी होती है! आजकल लोग आईटी केन्द्रो और डेयरि की गाय के बीच के सहजीवी संबंधो की संभावनाए तलाशने मे लगे है ! एक रिसर्च से पता चला है की 10000 गायो का एक डेयरि फॉर्म, प्रतिदिन एक मेगावाट बिजली पैदा कर सकता है!

"अब कोई नहीं कहेगा की सब गुड गोबर हो गया "

सोमवार, 20 दिसंबर 2010

ठीया (चौपाल): एक मंच सभी "रायचंदों" के लिए

ठीया (चौपाल): एक मंच सभी "रायचंदों" के लिए

भारतीयो के लिए चौपाल अपरिचित शब्द नहीं है! उत्तरभारत का चौपाल, मध्यक्षेत्र खासकर, मालवा, मे आते आते ठीया हो जाता है! यह एक ऐसा स्थान है, जो आमतौर पर पीपल,बरगद,नीम या आम की छाव मे बना, कच्चा पक्का ऐसा चबूतरा होता है, जो सभी गाववालों को प्रिय होता है ! ठिये पर किसी का हक नहीं होता, फिर भी सब का होता है ! ठीया या चौपाल वह स्थान है, जहा सभी जाति,संप्रदाय,पंथ,उम्र के लोग बैठते है, बतियाते है ! मुद्दे कभी गंभीर होते है, तो कभी हल्के फुल्के ! यही वह स्थान है, जहा गाँव के बुजुर्ग और पंच बैठकर विवादो का कभी खुद और कभी मिलजुलकर निर्णय करते है (फास्टट्रेक कोर्ट से भी फास्ट)
इस प्रकार वैदिक काल से ही ग्राम्यजीवन का प्रमुख अंग रहा है, चौपाल या ठीया ! यहाँ कभी धार्मिक अनुष्ठान होते है, तो कभी होती है, राजनेतिक भाषणबाजी ! चौपाल हमारे साहित्यकारो का भी प्रेरणा स्त्रोत रहा है, चाहे वो मुंशी प्रेमचन्द्र की पंच परमेश्वर" हो या फनिशवरनाथ रेणु की "मैला आँचल" और पंचनिघ्त" या फिर नागार्जुन की रचनाये सभी मे चौपाल या ठीया जरूर मिलेगा!
खैर आप ये न समझे की हम यहाँ साहित्यिक चर्चाए करने वाले है !
ये तो मंच है सभी रायचंदों,ठिलवों के लिए !!!!!
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