शनिवार, 25 जून 2011

हरियाली का मास्टर प्लान




इंदौर
के कुछ पर्यावरण विदो ने शहर के लिए
मिट्टी, जलवायु और स्थान के आधार पर एक मास्टर प्लान तैयार कर रहे हें।

वे लोग एक ऐसा प्रोजेक्ट तैयार कर रहे हैं जिसमें पौधों को पर्याप्त स्थान, वहां के वातावरण और मिट्टी के आधार पर रोपा जा सके। इसके लिए उन्होने शहर के कई क्षेत्रों में मिट्टी का भी परीक्षण किया है। इस प्लान में एक्जीक्यूट करने के तरीके भी बताएंगे। यह प्लान निगम और आईडीए को सौंप देंगे।


पर्यावरणविद् सुधींद्र मोहन शर्मा कहते हैं कि इस प्रक्रिया में हमने कई इलाके पॉइंट आउट किए हैं। शहर में कई स्थान खाली पड़े हैं जहां बड़े पैमाने पर प्लांटेशन हो सकता है। खान नदी के किनारे, शहर के आसपास की पहाड़िया,गार्डन,सड़कों के किनारे,यहां तक कि पार्किग एरिया में लगने वाले प्लांट भी अलग-अलग होते हैं




पिपलियापाला

सॉइल साइंस में पीएचडी डॉ. आनंद ओझा बताते हैं कि नए इं
दौर (पूर्वी क्षेत्र) में मिट्टी ज्यादा गहरी नहीं है। यहां के उद्यानों में सिलवर ओक व अकेसिया लगा सकते है, इसी प्रकार फूटी कोठी, कैट, सुदामानगर जोन में भी मिट्टी की थिकनेस कम होने के कारण यहीं प्लांट लगाने होंगे। जहां मिट्टी गहरी है व जगह कम है वहां केसिया,गुलमोहर, वेल्टाफोरम प्लांट लगा सकते हैं। ज्यादा जगह पर चंपा, बादाम के पौधे लगाए जाने चाहिए।


घरों के सामने लगने वाले पौधे भी मिट्टी के अनुरूप होना चाहिए जैसे पूर्वी क्षेत्र वाले अकेसिया लगाएं। उदाहरण के तौर पर जूनी इंदौर में स्पेस कम है और प्लांटेशन करना है और घर के सामने पेड़ लगाना संभव नहीं तो वहां के रहवासी पास स्थित खान नदी पर वॉटर लविंग प्लांटेशन करे।

गार्डन और सड़क किनारे प्लांटेशन- एनवायरन्मेंटल साइंस में पीए चडी डॉ. मनीष चांदेकर बताते हैं शहर की तासीर को देखते हुए प्लांटेशन होना चाहिए। शहर की प्रमुख सड़कों जैसे एमजी रोड, यशवंत निवास रो आदि के दोनों किनारों के लिए एलेसटोनिया उपयोगी है।
यह फुटपाथ पर राहगीरों को भरपूर छांव देता है। इसके नीचे ही पार्किग भी डेवलप की जा सकती है। इसलिए पार्किग एरिया के लिए भी यह उपयुक्त है। जहां ज्यादा पार्किग होती है वहां प्लूमेरिया अल्बा प्लांट लगा सकते हैं क्योंकि यह घना होता है और फूल भी देता है।



धेनु मार्केट (इंदौर)पुरानी यादें

मार्किग के बाद एस्टीमेट बनाएं निगम और आईडीए- इस प्लान को एक्जीक्यूट करने के लिए निगम और आईडीए को पहले ऐसे स्थानों की मार्किग करना होगी। इसमें भी पौधों की संख्या का अनुमान लगाना होगा। जैसे खान नदी के किनारे 4-5 रो में प्लांटेशन करने के लिए कितने पौधे लगाने होंगे और कितना ग्रास लैंड एरिया होगा। इसका एस्टीमेट लगाने के बाद नर्सरी डेवलप हो जहां ऐसे पौधे तैयार हो सकें। एक्जीक्यूशन के लिए फरवरी-मार्च से तैयारी व जून के दो हफ्ते तक पौधारोपण खत्म करना होगा तभी बारिश का लाभ पौ
धों को मिलेगा। टाइम बाउंड प्रोग्राम रखें तो यह प्लान सफल हो सकेगा।


यह है प्लानिंग


खान नदी के किनारे वॉटर लविंग प्लांट लगाना चाहिए जिसमें जामुन,अर्जुन,कहु प्रमुख हैं। शहर के बाहरी हिस्सों में पर्वतीय क्षेत्र जैसे देवगुराड़िया, रालामंडल आदि स्थानों पर मिट्टी बहुत उपजाऊ है इसलिए हार्डी प्लांट्स लगाए जा सकते हैं। ये प्लांट विषम परिस्थितियों में भी जीवित रहते हैं जैसे बेर,सीताफल, आंवला आदि।


शहर के अंदर बिलावली,सिरपुर,पिपलियाहाना, पिपलियापाला के आसपास ऐसे पौधे लगाने चाहिए जो मिट्टी के कटाव को रोक सकें। इनकी जड़ें मिट्टी पर पकड़ रख सकें। यहां ग्रास लैंड डेवलप करने के साथ बैंबू और नीम उपयुक्त पौधे हैं।

धार्मिक स्थान जैसे बिजासन,हींकारगिरि आदि स्थानों पर मिट्टी अच्छी नहीं है इसलिए यहां फ्लावरिंग ट्रीज लगाना होंगे। सीजलपेनिया एक छोटा फूल देने वाला पौधा है जो यहां कि मिट्टी वातावरण के हिसाब से बिलकुल उपयुक्त है।


ओपन स्पेस प्लांटेशन


दशहरा मैदान- इस मैदान के किनारे पर अच्छा पौधारोपण किया
जा सकता है। यहां की मिट्टी के लिए नीम सबसे उपयुक्त है। नीम सेहत के लिए भी जरूरी है और मैदान पर खेलने वालों के लिए भी लाभकारी होगा।



अहिल्या
आश्रम से भागीरथ पुरा-
अहिल्या आश्रम के पीछे व भागीरथपुरा, पुरानी मिल के ग्राउंड आदि एरिया खाली पड़ा है।

ये फ्रूट प्लांट के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं क्योंकि ऐसे प्लांट को पौष्टिक मिट्टी चाहिए और अधिक स्थान भी। यहां स्थान के साथ मिट्टी भी पौष्टिक और गहरी है। यहां पहले अमरूद बहुतायत में मिलते थे। अमरूद के साथ नींबू,मौसंबी,आम लगाए जा सकते हैं।


सिरपुर तालाब- इसके किनारे वॉटर लविंग प्लांट लगाएं साथ ही मिट्टी के क्षरण को रोकने के लिए बैंबू का प्लांटेशन जरूरी है। यहां काफी संख्या में विदेशी पक्षी आते हैं। बर्ड के नेचरल हैबिटेट के लिए छोटे, झाड़ीनुमा पौधे जहां वे अपना घोंसला बना सकें लगाए जा सकते हैं। सीताफल, खजूर, पाखर के रंग और फल भी बर्ड को आकर्षित करते हैं।


साभार : भास्कर

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