ठीया (चौपाल): एक मंच सभी "रायचंदों" के लिए
भारतीयो के लिए चौपाल अपरिचित शब्द नहीं है! उत्तरभारत का चौपाल, मध्यक्षेत्र खासकर, मालवा, मे आते आते ठीया हो जाता है! यह एक ऐसा स्थान है, जो आमतौर पर पीपल,बरगद,नीम या आम की छाव मे बना, कच्चा पक्का ऐसा चबूतरा होता है, जो सभी गाववालों को प्रिय होता है ! ठिये पर किसी का हक नहीं होता, फिर भी सब का होता है ! ठीया या चौपाल वह स्थान है, जहा सभी जाति,संप्रदाय,पंथ,उम्र के लोग बैठते है, बतियाते है ! मुद्दे कभी गंभीर होते है, तो कभी हल्के फुल्के ! यही वह स्थान है, जहा गाँव के बुजुर्ग और पंच बैठकर विवादो का कभी खुद और कभी मिलजुलकर निर्णय करते है (फास्टट्रेक कोर्ट से भी फास्ट)
इस प्रकार वैदिक काल से ही ग्राम्यजीवन का प्रमुख अंग रहा है, चौपाल या ठीया ! यहाँ कभी धार्मिक अनुष्ठान होते है, तो कभी होती है, राजनेतिक भाषणबाजी ! चौपाल हमारे साहित्यकारो का भी प्रेरणा स्त्रोत रहा है, चाहे वो मुंशी प्रेमचन्द्र की पंच परमेश्वर" हो या फनिशवरनाथ रेणु की "मैला आँचल" और पंचनिघ्त" या फिर नागार्जुन की रचनाये सभी मे चौपाल या ठीया जरूर मिलेगा!
खैर आप ये न समझे की हम यहाँ साहित्यिक चर्चाए करने वाले है !
ये तो मंच है सभी रायचंदों,ठिलवों के लिए !!!!!
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